साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
महफ़िल-अफ़रोज़ हो इंसाँ तो मज़ा आ जाए
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(634) Peoples Rate This
रेत की तरह किनारों पे हैं डरने वाले
दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
दिन ढला शाम हुई फूल कहीं लहराए
कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं
सुबू उठा कि ये नाज़ुक मक़ाम है साक़ी
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए
मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है