मुझे धोका हुआ कि जादू है
पावँ बजते हैं तेरे बिन छागल
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दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
मेरा जीना है सेज काँटों की
किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत
यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए
मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी
ये हादिसा भी हुआ है कि इश्क़-ए-यार की याद
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
हम बिन ग़म-ए-यार भी जिए हैं
गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती