मेरा जीना है सेज काँटों की
उन के मरने का नाम ताज-महल
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सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
आम हो फ़ैज़-ए-बहाराँ तो मज़ा आ जाए
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
वाइज़ो मैं भी तुम्हारी ही तरह मस्जिद में
यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की
दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ
कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
मुझे धोका हुआ कि जादू है
दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ