कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
कोई जवाज़ तो हो लुत्फ़-ए-बे-सबब के लिए
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(546) Peoples Rate This
मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं
दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
मुझे धोका हुआ कि जादू है
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे