वाइज़ो मैं भी तुम्हारी ही तरह मस्जिद में
बेच दूँ दौलत-ए-ईमाँ तो मज़ा आ जाए
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मेरा जीना है सेज काँटों की
कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है
ये हादिसा भी हुआ है कि इश्क़-ए-यार की याद
मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए