वो मुझे मश्वरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा देते थे
ये मोहब्बत की अदा है मुझे मालूम न था
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गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती
मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी
मुझे धोका हुआ कि जादू है
मेरा जीना है सेज काँटों की
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
कहते थे तुझी को जान अपनी
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
आम हो फ़ैज़-ए-बहाराँ तो मज़ा आ जाए
मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
चैन पड़ता है दिल को आज न कल