यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की
यही दिल कार-गह-ए-शीशा-गिराँ होता है
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ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'
आज आया है अपना ध्यान हमें
हम बिन ग़म-ए-यार भी जिए हैं
आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल
दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए
नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है
शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
मेरा जीना है सेज काँटों की
वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था