तारीख़ से इजतिमाई मुबाशरत
हम ने खेल समझ कर शुरूअ की
फिर शोर बढ़ता गया
और हमारा शौक़ देख कर
हमारी बुरीदा तारीख़
हमारी ज़ौजियत में दी गई
अब उस के बच्चे कुत्तों से ज़ियादा हैं
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(997) Peoples Rate This
तड़प भी है मिरी और बाइस-ए-सुकूँ भी है
वो जो मक़ाम है तेरा मिरी कहानी में
पुल-ए-सिरात न था दश्त-ए-नैनवा भी न था
आज़ादी का महल्ल-ए-वक़ूअ'-1
इस क़दर ग़ौर से देखा है सरापा उस का
वो याद कर भी रहा हो तो फ़ाएदा क्या है
आचानक मर जाने वाले लोग
जो साँस साँस सही उस सज़ा का नाम न लो
उस पर निगाह फिरती रही और दूर दूर
दरख़्त
'चार्ली-चैपलिन'
ये कज-अदाई ये ग़म्ज़ा तिरा कभी फिर यार!