वो जो मक़ाम है तेरा मिरी कहानी में
उसी मक़ाम पे मैं तेरे तज़्किरे में रहूँ
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(648) Peoples Rate This
तू मुझ को चाहता है इस मुग़ालते में रहूँ
दिल को तुम्हारे रंज की पर्वा बहुत रही
ये कैसी आया-ए-मोजिज़-नुमा निकल आई
मैं अपने-आप से कम भी हूँ और ज़ियादा भी
इजतिमाई मुबाशरत
पहलू-ए-ग़ैर में दुख-दर्द समोने न दिया
बहुत से दर्द थे पर ख़ुद को जोड़ कर रक्खा
निगह की शोला-फ़ज़ाई को कम है दीद उस की
आज़ादी का महल्ल-ए-वक़ूअ'-1
अगर ये ज़िंदगी तन्हा नहीं होती
इसी ख़याल से दिल की रफ़ू-गरी नहीं की