ख़िलाफ़ Poetry (page 5)

मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था

आलमताब तिश्ना

अगर बुलंदी का मेरी वो ए'तिराफ़ करे

अख़तर शाहजहाँपुरी

ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं

अख़्तर अंसारी

नदी का क्या है जिधर चाहे उस डगर जाए

अखिलेश तिवारी

यूँ मिरी तब्अ से होते हैं मआनी पैदा

अकबर इलाहाबादी

हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के

अकबर इलाहाबादी

अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके

अकबर इलाहाबादी

क्या हुए आशिक़ उस शकर-लब के

ऐश देहलवी

चराग़ उन पे जले थे बहुत हवा के ख़िलाफ़

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

दाना-ए-गंदुम-ए-बेदार उठाने लगा हूँ

अहमद कामरान

गुमराह कब किया है किसी राह ने मुझे

अफ़ज़ल गौहर राव

सब को बता रहा हूँ यही साफ़ साफ़ मैं

अफ़ज़ल गौहर राव

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया

अब्दुल हमीद अदम

पीरी में शौक़ हौसला-फ़रसा नहीं रहा

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

लहू लहू आरज़ू बदन का लिहाफ़ होगा

आनन्द सरूप अंजुम

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