ख़िलाफ़ Poetry (page 3)

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

इंशा अल्लाह ख़ान

मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं

इमरान आमी

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

आसाँ नहीं है जादा-ए-हैरत उबूरना

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

हुमैरा रहमान

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

हुमैरा रहमान

ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़

हसरत मोहानी

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

लुत्फ़ की उन से इल्तिजा न करें

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

आए हैं हम जहाँ में ग़म ले कर

हसरत अज़ीमाबादी

वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त के साथ ढल गए

हसन आबिद

तब्ल-ओ-अलम ही पास हैं अपने न मुल्क-ओ-माल

हैदर अली आतिश

तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल

हैदर अली आतिश

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

हैदर अली आतिश

मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं

हैदर अली आतिश

मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद

हैदर अली आतिश

हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ

हैदर अली आतिश

बाज़ार-ए-दहर में तिरी मंज़िल कहाँ न थी

हैदर अली आतिश

तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा

हफ़ीज़ मेरठी

बड़े अदब से ग़ुरूर-ए-सितम-गराँ बोला

हफ़ीज़ मेरठी

क़ासिद ख़िलाफ़-ए-ख़त कहीं तेरा बयाँ न हो

हफ़ीज़ जौनपुरी

वही हालात हैं फ़क़ीरों के

हबीब जालिब

एक मैं हूँ और लाख मसाइल ख़ुदा गवाह

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

और क्या मुझ से कोई साहिब-नज़र ले जाएगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तिरे ख़िलाफ़ किया जब भी एहतिजाज ऐ दोस्त

फ़रताश सय्यद

वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मिरे साथ

फ़रताश सय्यद

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