हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें
जो दोश पर लिए हो उस के बर-ख़िलाफ़ क्या करें
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
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अजब मज़ाक़ उस का था कि सर से पाँव तक मुझे
क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में
फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई
वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
लोग तो इक मंज़र हैं तख़्त-नशीनों की ख़ातिर
इन लफ़्ज़ों में ख़ुद को ढूँडूँगी मैं भी
दिल को दरून-ए-ख़्वाब का मौसम बोझल रखता है
मिरी अलमारियों में क़ीमती सामान काफ़ी था
लोगो! हम परदेसी हो कर जाने क्या क्या खो बैठे
कंकर फेंक रहे हैं ये अंदाज़ा करने को
गुज़शता मौसमों में बुझ गए हैं रंग फूलों के