मिरी अलमारियों में क़ीमती सामान काफ़ी था
मगर अच्छा लगा उस से कई फ़रमाइशें करना
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क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में
दिल को दरून-ए-ख़्वाब का मौसम बोझल रखता है
वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
लोग तो इक मंज़र हैं तख़्त-नशीनों की ख़ातिर
जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से
हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें
तबीअत इन दिनों औहाम की उन मंज़िलों पर है
फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई
अजब मज़ाक़ उस का था कि सर से पाँव तक मुझे
गुज़शता मौसमों में बुझ गए हैं रंग फूलों के