अजब मज़ाक़ उस का था कि सर से पाँव तक मुझे
वफ़ाओं से भिगो दिया नदामतों की सोच में
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(712) Peoples Rate This
मिरी अलमारियों में क़ीमती सामान काफ़ी था
ज़रा सी बात पर नाराज़ होना रंजिशें करना
क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में
हम और तुम जो बदल गए तो इतनी हैरत क्या
दिल को दरून-ए-ख़्वाब का मौसम बोझल रखता है
हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें
लोगो! हम परदेसी हो कर जाने क्या क्या खो बैठे
लोग तो इक मंज़र हैं तख़्त-नशीनों की ख़ातिर
वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई