गुमराह कब किया है किसी राह ने मुझे
चलने लगा हूँ आप ही अपने ख़िलाफ़ में
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देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
किस प्यास से ख़ाली हुआ मश्कीज़ा हमारा
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
यहाँ भला कौन अपनी मर्ज़ी से जी रहा है
क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़
हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से
शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे