चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
शहर का शहर हमारा तो नहीं हो सकता
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अपने बदन से लिपटा हुआ आदमी था मैं
हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया
मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं
देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली
इसी लिए भी नए सफ़र से बंधे हुए हैं
मैं अपनी ज़ात में जब से सितारा होने लगा
नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से
ये कैसे ख़्वाब की ख़्वाहिश में घर से निकला हूँ
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
एक ही दाएरे में क़ैद हैं हम लोग यहाँ