अपने बदन से लिपटा हुआ आदमी था मैं
मुझ से छुड़ा के मुझ को बता कौन ले गया
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ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले
चुप-चाप निकल आए थे सहरा की तरफ़ हम
मैं सुन रहा हूँ जो दुनिया सुना रही है मुझे
देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली
इसी लिए भी नए सफ़र से बंधे हुए हैं
सब को बता रहा हूँ यही साफ़ साफ़ मैं
मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं
शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे
ये कैसे ख़्वाब की ख़्वाहिश में घर से निकला हूँ
एक ही दाएरे में क़ैद हैं हम लोग यहाँ