एक ही दाएरे में क़ैद हैं हम लोग यहाँ
अब जहाँ तुम हो कोई और वहाँ था पहले
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
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Friends Poetry
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कौन सी ऐसी कमी मेरे ख़द-ओ-ख़ाल में है
गुमराह कब किया है किसी राह ने मुझे
सब को बता रहा हूँ यही साफ़ साफ़ मैं
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
मैं अपनी ज़ात में जब से सितारा होने लगा
शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे
नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली
आई थी उस तरफ़ जो हवा कौन ले गया
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया