ऋतु Poetry (page 21)

ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है

अख़्तर सईद ख़ान

मआल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कुछ भी नहीं

अख़्तर सईद ख़ान

ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए

अख़्तर होशियारपुरी

मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में

अख़्तर अंसारी

क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी

अख़्तर अंसारी

ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं

अख़्तर अंसारी

हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है

अख़्तर अंसारी

ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं

अख़्तर अंसारी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा

अजमल सिराज

और तो ख़ैर क्या रह गया

अजमल सिराज

ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम

अजमल अजमली

जहाँ न दिल को सुकून है न है क़रार मुझे

आजिज़ मातवी

तिलिस्म-ज़ार-ए-शब-ए-माह में गुज़र जाए

ऐतबार साजिद

तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था

ऐतबार साजिद

धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा

ऐतबार साजिद

आने वाली थी ख़िज़ाँ मैदान ख़ाली कर दिया

ऐतबार साजिद

ये तेरा ख़याल है कि तू है

अहमद ज़फ़र

उस ने तोड़ा जहाँ कोई पैमाँ

अहमद ज़फ़र

जब तक ग़ुबार-ए-राह मिरा हम-सफ़र रहा

अहमद शाहिद ख़ाँ

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

वक़्त की बात

अहमद राही

वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे

अहमद नदीम क़ासमी

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम

अहमद नदीम क़ासमी

दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई

अहमद नदीम क़ासमी

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

अहमद मुश्ताक़

कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है

अहमद मुश्ताक़

इक फूल मेरे पास था इक शम्अ' मेरे साथ थी

अहमद मुश्ताक़

बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता

अहमद मुश्ताक़

अजब नहीं कभी नग़्मा बने फ़ुग़ाँ मेरी

अहमद मुश्ताक़

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