खुशबू Poetry (page 32)

अभी उस की ज़रूरत थी

अब्बास ताबिश

ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

अब्बास ताबिश

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

अब्बास ताबिश

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है

अब्बास ताबिश

अब परिंदों की यहाँ नक़्ल-ए-मकानी कम है

अब्बास ताबिश

धुआँ सा फैल गया दिल में शाम ढलते ही

अब्बास रिज़वी

ख़्वाब-गह में सियाह ख़ुशबू था

अब्बास कैफ़ी

तुम आके लौट गए फिर भी हो यहीं मौजूद

अब्बास दाना

नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था

अब्बास दाना

न हो जिस पे भरोसा उस से हम यारी नहीं रखते

अब्बास दाना

मिरा ख़ुलूस अभी सख़्त इम्तिहान में है

अब्बास दाना

ज़मीन उन के लिए फूल खिलाती है

अब्बास अतहर

सुबू उठा मिरे साक़ी कि रात जाती है

आज़िम कोहली

आ कि चाहत वस्ल की फिर से बड़ी पुर-ज़ोर है

आज़िम कोहली

बहार-ए-ज़ख़्म-ए-लब-ए-आतिशीं हुई मुझ से

आतिफ़ कमाल राना

सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है

आसी ग़ाज़ीपुरी

भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में

आशुफ़्ता चंगेज़ी

गया था माँगने ख़ुशबू मैं फूल से लेकिन

आनिस मुईन

आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्म

आनिस मुईन

इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें

आनिस मुईन

ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम

आलोक श्रीवास्तव

ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम

आलोक श्रीवास्तव

तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं

आलोक श्रीवास्तव

मुझे सिरे से पकड़ कर उधेड़ देती है

आलोक श्रीवास्तव

हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं

आलोक श्रीवास्तव

हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता

आल-ए-अहमद सूरूर

आँधियाँ ग़म की चलीं और कर्ब-बादल छा गए

अाबिदा उरूज

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