खुशबू Poetry (page 3)

अजनबी ख़ुशबू की आहट से महक उट्ठा बदन

ज़की तारिक़

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर

ज़काउद्दीन शायाँ

ख़ाक हम मुँह पे मले आए हैं

ज़काउद्दीन शायाँ

हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी

ज़काउद्दीन शायाँ

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

जम्हूरियत

ज़ाहिद मसूद

तज़ाद की काश्त

ज़ाहिद इमरोज़

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

सूखे हुए पत्तों में आवाज़ की ख़ुशबू है

ज़हीर सिद्दीक़ी

हिज्र ओ विसाल की सर्दी गर्मी सहता है

ज़हीर काश्मीरी

मैं तुम्हें फूल कहूँ तुम मुझे ख़ुश्बू देना

ज़फ़र सहबाई

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

मुझे लगते हैं प्यारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

ज़फ़र ख़ान नियाज़ी

हज़ार बंदिश-ए-औक़ात से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से

ज़फ़र इक़बाल

दिल का ये दश्त अरसा-ए-महशर लगा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है

ज़फ़र इक़बाल

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

ज़फ़र गोरखपुरी

कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं

ज़फ़र गोरखपुरी

शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के

ज़फ़र गौरी

चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया

ज़फ़र गौरी

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

हालत-ए-बीमार-ए-ग़म पर जिस को हैरानी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

शहर लगता है बयाबान मुझे

यूसुफ़ ज़फ़र

जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है

यूसुफ़ ज़फ़र

तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं

यूसुफ़ तक़ी

दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा

यूसुफ़ तक़ी

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