खुशबू Poetry (page 30)

जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे

अहमद फ़राज़

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

अहमद फ़राज़

जब तिरी याद के जुगनू चमके

अहमद फ़राज़

बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए

अहमद फ़राज़

आज मुझे अपनी आँखों से उस के क़ुर्ब की ख़ुशबू आई

अहमद फ़क़ीह

वक़्त के हर इक नक़्श का मअ'नी इतना बदला बदला होगा

अहमद फ़क़ीह

सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें

अहमद अता

वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली

आग़ा हज्जू शरफ़

उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को लटका लिया है गेसू में

आग़ा हज्जू शरफ़

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

अपनी तन्हाइयों के ग़ार में हूँ

अफ़ज़ल इलाहाबादी

तज़ाद

आफ़ताब शम्सी

फिर बपा शहर में अफ़रातफ़री कर जाए

आफ़ताब इक़बाल शमीम

कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन

अना को बाँधता रहता हूँ अपने शे'रों में

आफ़ताब हुसैन

वतन का राग

अफ़सर मेरठी

ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता

अफ़सर माहपुरी

तेरी ख़ुशबू का तराशा है ये पैकर किस ने

अफ़सर आज़री

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है

अफ़रोज़ आलम

गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है

अफ़रोज़ आलम

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

टूटी लज़्ज़त की ख़ुशबू

आदिल मंसूरी

सितारा सो गया है

आदिल मंसूरी

खिड़की अंधी हो चुकी है

आदिल मंसूरी

गोल कमरे को सजाता हूँ

आदिल मंसूरी

आमीन

आदिल मंसूरी

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आदिल मंसूरी

वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू

अदीम हाशमी

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