खुशबू Poetry (page 29)

मेरे हमराह सितारे कभी जुगनू निकले

ऐनुद्दीन आज़िम

एक ख़ुश्बू थी जो मल्बूस पे ताबिंदा थी

ऐन ताबिश

पुरानी फ़ाइलों में गुनगुनाती शाम

ऐन ताबिश

हवेली मौत की दहलीज़ पर

ऐन ताबिश

बदलने का कोई मौसम नहीं होता

ऐन ताबिश

प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी था

ऐन ताबिश

कैसे अफ़्सूँ थे वहाँ कैसे फ़साने थे उधर

ऐन ताबिश

दिल को ब-नाम-ए-इश्क़ सजाना पड़ा हमें

अहमद निसार

वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है

अहमद ज़िया

हर क़दम पर मेरे अरमानों का ख़ूँ

अहमद ज़िया

उम्र का आख़िरी दिन

अहमद ज़फ़र

हैरत-ख़ाना-ए-इमरोज़

अहमद ज़फ़र

वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए

अहमद वसी

बग़ैर-ए-जिस्म भी है जिस्म का एहसास ज़िंदा

अहमद शनास

यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है

अहमद शनास

तसव्वुर को जगा रक्खा है उस ने

अहमद शनास

लम्हा लम्हा रोज़ ओ शब को देर होती जाएगी

अहमद शनास

फूल ख़ुशबू उन पे उड़ती तितलियों की ख़ैर हो

अहमद सज्जाद बाबर

दश्त-ए-वफ़ा

अहमद नदीम क़ासमी

ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे

अहमद मुश्ताक़

रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू

अहमद मुश्ताक़

दिल में वो शोर न आँखों में वो नम रहता है

अहमद मुश्ताक़

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है

अहमद कमाल परवाज़ी

ये तेरी चाह भी क्या तेरी आरज़ू भी क्या

अहमद हमदानी

याद क्या क्या लोग दश्त-ए-बे-कराँ में आए थे

अहमद हमदानी

उजाड़ घर में ये ख़ुशबू कहाँ से आई है

अहमद फ़राज़

ज़ेर-ए-लब

अहमद फ़राज़

मत क़त्ल करो आवाज़ों को

अहमद फ़राज़

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

अहमद फ़राज़

मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला

अहमद फ़राज़

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