किरण Poetry (page 7)

यूँही जलाए चलो दोस्तो भरम के चराग़

डी. राज कँवल

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे

बेकल उत्साही

वक़्त के कटहरे में

बशर नवाज़

ये हुस्न है झरनों में न है बाद-ए-चमन में

बशर नवाज़

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही

ज़फ़र

सफ़र मुदाम सफ़र

अज़ीज़ तमन्नाई

उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में

अज़ीज़ तमन्नाई

वक़्त की आँख में सदियों की थकन है, मैं हूँ

अज़ीज़ नबील

सुब्ह और शाम के सब रंग हटाए हुए हैं

अज़ीज़ नबील

लज़्ज़त-ए-ग़म

अज़ीज़ लखनवी

शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की

अज़ीज़ हैदराबादी

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

हरे दरख़्त का शाख़ों से रिश्ता टूट गया

अज़हर नैयर

सुरूर-ए-इश्क़ की मस्ती कहाँ है सब के लिए

अज़ीम कुरेशी

फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे

अतीक़ अंज़र

शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए

अताउर्रहमान जमील

सुना है चाँदनी-रातों में अक्सर तुम

असरा रिज़वी

तेरी यादें बहाल रखती है

आसिमा ताहिर

23-मार्च अज़ान-ए-सुब्ह-ए-नियाज़

अशरफ़ जावेद

रौशनाई

अशोक लाल

झपकी ज़रा जो आँख जवानी गुज़र गई

असर लखनवी

यही नहीं कि मिरा घर बदलता जाता है

असअ'द बदायुनी

बड़े नादान थे हम रेत को आब-ए-रवाँ समझे

असअ'द बदायुनी

कुछ मैं ने कही है न अभी उस ने सुनी है

आरज़ू लखनवी

धूप छाँव के दरमियाँ

अरशद कमाल

ज़माना कुछ भी कहे तेरी आरज़ू कर लूँ

अरशद कमाल

15 अगस्त (1949)

अर्श मलसियानी

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