लहर Poetry (page 2)

अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे

ताबिश कमाल

धूमें मचाएँ सब्ज़ा रौंदें फूलों को पामाल करें

ताबिश देहलवी

क़रार दीदा-ओ-दिल में रहा नहीं है बहुत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

ये धूप गिरी है जो मिरे लॉन में आ कर

स्वप्निल तिवारी

किरन इक मो'जिज़ा सा कर गई है

स्वप्निल तिवारी

हर एक सम्त इशारे थे और रस्ता भी

सुनील आफ़ताब

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

सुहैल अख़्तर

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में

शुजा ख़ावर

तिरी साज़िशों से ही जुगनू मरे

शाैकत हाशमी

फ़ज़ा-ए-नम में सदाओं का शोर हो जाए

शमीम क़ासमी

खंडर

शमीम करहानी

हर नक़्श-ए-नवा लौट के जाने के लिए था

शमीम हनफ़ी

वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ

शकेब जलाली

क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त

शकेब जलाली

ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मुझे क्या देख कर तू तक रहा है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जीने मरने के दरमियान एक साअत

शहज़ाद अहमद

देखने उस को कोई मेरे सिवा क्यूँ आए

शहज़ाद अहमद

रग रग में मेरी फैल गया है ये कैसा ज़हर

शाहिद माहुली

क्या फ़र्ज़ है ये जिस्म के ज़िंदाँ में सज़ा दे

शाहिद कबीर

कुछ नहीं लिक्खा हुआ फिर भी पढ़ा जाता है क्या

शाहीन अब्बास

दर-ए-इम्काँ से गुज़र कर सर-ए-मंज़र आ कर

शाहीन अब्बास

तलाश

शहाब जाफ़री

तीर ख़त्म हैं तो क्या हाथ में कमाँ रखना

शफ़ीक़ सलीमी

गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहर

शफ़ीक़ सलीमी

मैं ने किस शौक़ से इक उम्र ग़ज़ल-ख़्वानी की

शबनम रूमानी

मय-ए-फ़राग़त का आख़िरी दौर चल रहा था

शब्बीर शाहिद

बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बहार-ए-बाग़ हो मीना हो जाम-ए-सहबा हो

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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