लहर Poetry (page 4)

नज़र आते नहीं हैं बहर में हम

साबिर ज़फ़र

मोहब्बतें थीं कुछ ऐसी विसाल हो के रहा

साबिर ज़फ़र

लहू में नाचती हमेश्गी उदास हो के रह गई

साबिर ज़फ़र

डूबता हूँ जो हटाता हूँ नज़र पानी से

साबिर ज़फ़र

वीनस

रियाज़ लतीफ़

किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था

रियाज़ लतीफ़

हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए

रियाज़ लतीफ़

बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता

रियाज़ लतीफ़

मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा

रियाज़ ख़ैराबादी

यूँ तो लिखने के लिए क्या नहीं लिक्खा मैं ने

राज़ी अख्तर शौक़

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

राज़ी अख्तर शौक़

ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग

राशिद मतीन

उन झील सी गहरी आँखों में

रसा चुग़ताई

मिट्टी जब तक नम रहती है

रसा चुग़ताई

आज इक लहर भी पानी में न थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

साँप वाली

रईस फ़रोग़

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

बगूला बन के समुंदर में ख़ाक उड़ाना थी

इक़बाल साजिद

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

वो संगलाख़ ज़मीनों में शेर कहता था

इम्तियाज़ साग़र

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का

इमदाद अली बहर

नशात-ए-नौ की तलब है न ताज़ा ग़म का जिगर

इकराम आज़म

मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वो जो दर्द था तिरे इश्क़ का वही हर्फ़ हर्फ़-ए-सुख़न में है

हसन नईम

शब की दहलीज़ से किस हाथ ने फेंका पत्थर

हसन अख्तर जलील

कहफ़-उल-क़हत

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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