लहर Poetry (page 7)

धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए

अफ़ज़ाल नवेद

बाग़ क्या क्या शजर दिखाते हैं

अफ़ज़ाल नवेद

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

लोग हँसने के लिए रोते हैं अक्सर दहर में

अफ़ज़ल मिनहास

काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी

अफ़ज़ल मिनहास

हर आइने में तिरा ही धुआँ दिखाई दिया

अफ़ज़ल गौहर राव

हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का

आफ़ताब इक़बाल शमीम

ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं

आफ़ताब हुसैन

क़दम क़दम पे किसी इम्तिहाँ की ज़द में है

आफ़ताब हुसैन

हमारी तिश्ना-लबी अब सुबू से खेलेगी

अफ़ीफ़ सिराज

साँप सर मार अगर जो जावे मर

आबरू शाह मुबारक

न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया

आबरू शाह मुबारक

दिल है तिरे प्यार करने कूँ

आबरू शाह मुबारक

लहरा के झूम झूम के ला मुस्कुरा के ला

अब्दुल हमीद अदम

ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैं

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

ये मौज मौज बनी किस की शक्ल सी 'ताबिश'

अब्बास ताबिश

आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर

अब्बास ताबिश

ये किस के ख़ौफ़ का गलियों में ज़हर फैल गया

अब्बास ताबिश

नींदों का एक आलम-ए-असबाब और है

अब्बास ताबिश

बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया

अब्बास ताबिश

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