लहर Poetry (page 5)

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आफ़ाक़ में फैले हुए मंज़र से निकल कर

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

नज़्म

फ़ारूक़ मुज़्तर

लहर का ठहराओ

फ़रहत एहसास

क़ैद-ए-तन्हाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ रौशनियों के शहर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सब खेल-तमाशा ख़त्म हुआ

फ़हीम शनास काज़मी

ऐ मुबारज़-तलब

फ़हीम शनास काज़मी

लहू की लहर में इक ख़्वाब-ए-दिल-शिकन भी गया

फ़हीम शनास काज़मी

मैं

एजाज़ फ़ारूक़ी

नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा

एहसान दानिश

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

बशीर बद्र

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

बशीर बद्र

सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी

अज़रा परवीन

सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी

अज़रा परवीन

क्यूँ न हो शौक़ तिरे दर पे जबीं-साई का

अज़ीज़ लखनवी

महक में ज़हर की इक लहर भी ख़्वाबीदा रहती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

अज़ीज़ हामिद मदनी

किस ने कहा कि चुप हूँ मियाँ बोलता नहीं

अज़हर अब्बास

घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच

अय्यूब ख़ावर

रात और रेल

असरार-उल-हक़ मजाज़

आँखों से मैं ने चख लिया मौसम के ज़हर को

असलम आज़ाद

साहिल-ए-इंतिज़ार में तन्हा

आसिफ़ रज़ा

इश्क़ की गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ से लाऊँ

असर लखनवी

शायरी मुझ को अजब हाल में ले जाती है

आरिफ़ इमाम

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