इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

अब भी ये क़ुदरत कहाँ है आदमी की ज़ात को

जिन का सारा जिस्म होता है हमारी ही तरह

फूल कुछ ऐसे भी खिलते हैं हमेशा रात को

एक इक कर के सभी कपड़े बदन से गिर चुके

सुब्ह फिर हम ये कफ़न पहनाएँगे जज़्बात को

पीछे पीछे रात थी तारों का इक लश्कर लिए

रेल की पटरी पे सूरज चल रहा था रात को

आब ओ ख़ाक ओ बाद में भी लहर वो आ जाए है

सुर्ख़ कर देती है दम भर में जो पीली धात को

सुब्ह बिस्तर बंद है जिस में लिपट जाते हैं हम

इक सफ़र के ब'अद फिर खुलते हैं आधी रात को

सर पे सूरज के हमारे प्यार का साया रहे

मामता का जिस्म माँगे ज़िंदगी की बात को

(868) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ek Pari Ke Sath Maujon Par Tahalta Raat Ko In Hindi By Famous Poet Bashir Badr. Ek Pari Ke Sath Maujon Par Tahalta Raat Ko is written by Bashir Badr. Complete Poem Ek Pari Ke Sath Maujon Par Tahalta Raat Ko in Hindi by Bashir Badr. Download free Ek Pari Ke Sath Maujon Par Tahalta Raat Ko Poem for Youth in PDF. Ek Pari Ke Sath Maujon Par Tahalta Raat Ko is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Pari Ke Sath Maujon Par Tahalta Raat Ko with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.