मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए
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हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ