मारा Poetry (page 6)

ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

पत्थर

ग़ज़नफ़र

कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हम-नशीं

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर

ग़ालिब

गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी

नख़्ल-ए-ममनूअा के रुख़ दोबारा गया मैं तो मारा गया

फ़रताश सय्यद

कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा

फ़ारूक़ बाँसपारी

दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है

फ़रहत शहज़ाद

मुसलसल अश्क-बारी हो रही है

फ़रहत एहसास

हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

जब तिरी ज़ात को फैला हुआ दरिया समझूँ

फ़रहत अब्बास

की वफ़ा यार से एक एक जफ़ा के बदले

फ़ानी बदायुनी

मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

जो धूप की तपती हुई साँसों से बची सोच

फख्र ज़मान

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

इस शहर-ए-निगाराँ की कुछ बात निराली है

दिवाकर राही

देख जुर्म-ओ-सज़ा की बात न कर

द्वारका दास शोला

इश्क़ शबनम नहीं शरारा है

दर्शन सिंह

उज़्र उन की ज़बान से निकला

दाग़ देहलवी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

दाग़ देहलवी

देने वाले ये ज़िंदगी दी है

ब्रहमा नन्द जलीस

दीवार-ओ-दर में सिमटा इक लम्स काँपता है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

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