आगे बढ़ो Poetry (page 17)

चैन मुझ को मिला कहाँ अब तक

असग़र शमीम

वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए

असग़र गोंडवी

रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते

असग़र गोंडवी

रौशनी में किस क़दर दीवार-ओ-दर अच्छे लगे

असअ'द बदायुनी

न कोई जल्वती न कोई ख़ल्वती न कोई ख़ास था न कोई आम था

आरज़ू लखनवी

चोट दिल पर लगे और आह ज़बाँ से निकले

अरुण कुमार आर्य

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

तलाश-ए-ला-मकाँ में उड़ रहा हूँ

अरशद महमूद नाशाद

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

अरशद अली ख़ान क़लक़

हिन्दोस्तान मेरा

अर्श मलसियानी

नैरंगी-ए-बहार-ओ-ख़िज़ाँ देखते रहे

अर्श मलसियानी

अज़ाब-ए-हमसफ़री से गुरेज़ था मुझ को

अनवर सिद्दीक़ी

हर सम्त समुंदर है हर सम्त रवाँ पानी

अनवर सदीद

इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया

अंजुम सलीमी

दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ

अंजुम रूमानी

है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी

अंजुम रूमानी

किस ने दी मुझ को सदा कौन-ओ-मकाँ के उस तरफ़

अंजुम नियाज़ी

दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है

अंजुम ख़लीक़

तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया

अंजुम इरफ़ानी

अब किसी अंधे सफ़र के लिए तय्यार हुआ चाहता है

अंजुम इरफ़ानी

ये ख़ाना हमेशा से वीरान है

अनीस अशफ़ाक़

हमेशा किसी इम्तिहाँ में रहा

अनीस अशफ़ाक़

तुम्हारे शहर में इतने मकाँ गिरे कैसे

अनीस अंसारी

बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो

अनीस अंसारी

चश्म-ए-बे-ख़्वाब को सामान बहुत

अमजद इस्लाम अमजद

ग़ुबार-ए-दश्त-ए-तलब में हैं रफ़्तगाँ क्या क्या

अमजद इस्लाम अमजद

फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ

अमीरुल्लाह तस्लीम

फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ

अमीरुल्लाह तस्लीम

मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी

अमीर हम्ज़ा साक़िब

बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है

अमीर हम्ज़ा साक़िब

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