मर Poetry (page 2)

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

कोई भी दर न मिला नारसी के मरक़द में

ज़ेब ग़ौरी

सभी को ख़्वाहिश-ए-तस्ख़ीर-ए-शौक़-ए-हुक्मरानी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है

ज़करिय़ा शाज़

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

इश्क़ की मंज़िल में अब तक रस्म मर जाने की है

ज़ेब बरैलवी

हक़ीक़तों को फ़साना नहीं बनाती मैं

ज़हरा क़रार

हक़ीक़तों को फ़साना नहीं बनाती मैं

ज़हरा क़रार

निगाह-ए-शौक़ को रुख़ पर निसार होने दो

ज़हीर अहमद ताज

हम ने तो शराफ़त में हर चीज़ गँवा दी है

ज़ाहिदुल हक़

किसी मंज़र के पस-मंज़र में जा कर

ज़ाहिद शम्सी

आजिज़ी को चलन किए हुए हैं

ज़ाहिद शम्सी

फ़सील-ए-जिस्म गिरा कर बिखर न जाऊँ मैं

ज़ाहिद नवेद

ज़ख़्मी ख़्वाबों की तीसरी दुनिया

ज़ाहिद इमरोज़

वक़्त के नाम एक ख़त

ज़ाहिद इमरोज़

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

ज़हीर काश्मीरी

दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो

ज़हीर काश्मीरी

साक़िया मर के उठेंगे तिरे मय-ख़ाने से

ज़हीर देहलवी

कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़

ज़हीर देहलवी

ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा

ज़हीर देहलवी

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के

ज़फ़र इक़बाल

जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

ज़फ़र इक़बाल

हमारे सर से वो तूफ़ाँ कहीं गुज़र गए हैं

ज़फ़र इक़बाल

इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली

ज़फर इमाम

इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली

ज़फर इमाम

बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

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