मर Poetry (page 4)

जब तन न रहा मेरा हूँ वासिल-ए-जानाना

वली उज़लत

गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़

वली उज़लत

उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे

वाली आसी

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम

वाली आसी

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

मिरे अंदर कहीं पर खो गई है

वजीह सानी

दुनिया अपनी मंज़िल पहुँची तुम घर में बेज़ार पड़े

वजद चुगताई

सफ़र ही बाद-ए-सफ़र है तो क्यूँ न घर जाऊँ

वहीद अख़्तर

तन्हा होता हूँ तो मर जाता हूँ मैं

विकास शर्मा राज़

बारिश में अक्सर ऐसा हो जाता है

विकास शर्मा राज़

तवील ख़ामुशी

वर्षा गोरछिया

मुमकिन नहीं है अपने को रुस्वा वफ़ा करे

वफ़ा बराही

ख़ुद सवाल-ओ-जवाब करते रहो

उर्मिलामाधव

वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए

उनवान चिश्ती

जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया

उम्मीद फ़ाज़ली

ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने

त्रिपुरारि

जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में

त्रिपुरारि

पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ

त्रिपुरारि

भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

त्रिपुरारि

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

तिलोकचंद महरूम

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

तिलोकचंद महरूम

मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा

तौक़ीर तक़ी

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

तौक़ीर तक़ी

पर्वाज़ का था शौक़ मुझे आसमान तक

ताैफ़ीक़ साग़र

ख़ुदा के नाम पे जिस तरह लोग मर रहे हैं

तसनीम आबिदी

हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए

तसनीम आबिदी

मिल जाए अमाँ दुनिया में पल भर नहीं लगता

तस्लीम अहमद तसव्वुर

'तस्कीन' करूँ क्या दिल-ए-मुज़्तर का इलाज अब

मीर तस्कीन देहलवी

उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया

मीर तस्कीन देहलवी

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