वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
जीने की आरज़ू में कई बार मर गए
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मैं किस तरह तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की
किसी के फ़ैज़-ए-क़ुर्ब से हयात अब सँवर गई
तअ'स्सुब की फ़ज़ा में ता'ना-ए-किरदार क्या देता
सारी दुनिया में दाना है अपने घर में कुछ भी नहीं
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं