परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
मोहब्बत में ये सूरत भी न रास आई तो क्या होगा
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हुस्न ही तो नहीं बेताब-ए-नुमाइश 'उनवाँ'
आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की
वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले