मिरी समझ में आ गया हर एक राज़-ए-ज़िंदगी
जो दिल पे चोट पड़ गई तो दूर तक नज़र गई
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कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
किसी के फ़ैज़-ए-क़ुर्ब से हयात अब सँवर गई
कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
हुस्न ही तो नहीं बेताब-ए-नुमाइश 'उनवाँ'
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे
सारी दुनिया में दाना है अपने घर में कुछ भी नहीं