हुस्न ही तो नहीं बेताब-ए-नुमाइश 'उनवाँ'
इश्क़ भी आज नई जल्वागरी माँगे है
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तअ'स्सुब की फ़ज़ा में ता'ना-ए-किरदार क्या देता
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
आप से चूक हो गई शायद
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
मिरी समझ में आ गया हर एक राज़-ए-ज़िंदगी
मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए