कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
शहर-ए-तमन्ना की गलियों में बरपा है कोहराम बहुत
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आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की
सारी दुनिया में दाना है अपने घर में कुछ भी नहीं
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है
कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं
रहने दे तकलीफ़-ए-तवज्जोह दिल को है आराम बहुत
मैं किस तरह तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे