मैं किस तरह तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ
रह-ए-वफ़ा में तिरे नक़्श-ए-पा भी मिलते हैं
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बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
तअ'स्सुब की फ़ज़ा में ता'ना-ए-किरदार क्या देता
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
ज़िंदाबाद ऐ दश्त के मंज़र ज़िंदाबाद
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे
किसी के फ़ैज़-ए-क़ुर्ब से हयात अब सँवर गई
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है
सारी दुनिया में दाना है अपने घर में कुछ भी नहीं
आप से चूक हो गई शायद