ख़ुदा के नाम पे जिस तरह लोग मर रहे हैं
दुआ करो कि अकेला ख़ुदा न रह जाए
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एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था
किसी ने पूछा जो उम्र-ए-रवाँ के बारे में
हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म
मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है
फूल मुरझा जाएँगे काँटे लगे रह जाएँगे
राज़ का बज़्म में चर्चा कभी होने न दिया
इस बार हुआ कुन का असर और तरह का
हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए
तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है
बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर