उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Rahat Indori
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
कुछ दिन तिरा ख़याल तिरी आरज़ू रही
मौज-ए-हवा आब-ए-रवाँ और ये ज़मीन ओ आसमाँ
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
क्या हिज्र में जी निढाल करना
भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं