सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
सब चाक दिलों के सिल जाएँ कोई ऐसा काम करो 'वाली'
Parveen Shakir
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Javed Akhtar
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Wasi Shah
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Gulzar
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मैं जब छोटा सा था काग़ज़ पे ये मंज़र बनाता था
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह
मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम
सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे
मौज-ए-हवा आब-ए-रवाँ और ये ज़मीन ओ आसमाँ
कुछ दिन तिरा ख़याल तिरी आरज़ू रही
दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे