मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
फ़क़ीर सब के लिए इंतिज़ाम रखते हैं
Mohsin Naqvi
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Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
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हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते
कभी भूले से भी अब याद भी आती नहीं जिन की
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम
छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम
ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
कुछ दिन तिरा ख़याल तिरी आरज़ू रही
इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ