हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ
चराग़ों को हवाओं से बचाना चाहते हैं हम
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इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह
यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
हमारे शहर में अब हर तरफ़ वहशत बरसती है
फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम
भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम