मर Poetry (page 31)

जो मेरे मरने का तमाशा नहीं देखना चाहती

अहमद आज़ाद

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

नज़र बचा के वो हम से गुज़र गए चुप-चाप

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

ये कैसे बाल खोले आए क्यूँ सूरत बनी ग़म की

आग़ा शायर

लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

पाया तिरे कुश्तों ने जो मैदान-ए-बयाबाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की

आग़ा हज्जू शरफ़

जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

आग़ा हज्जू शरफ़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई

आग़ा हज्जू शरफ़

बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की

अफ़ज़ल ख़ान

वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो

अफ़ज़ल ख़ान

हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ

अफ़ज़ल ख़ान

कौन शाएर रह सकता है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

जंगल के पास एक औरत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

एक दिन और ज़िंदा रह जाना

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

धूप जब ढल गई तो साया नहीं

आफ़ताब हुसैन

हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता

अफ़सर इलाहाबादी

फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता

अफ़सर इलाहाबादी

ठोकर से फ़क़ीरों की दुनिया का बिखर जाना

अफ़रोज़ आलम

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

तिलिस्मी ग़ार का दरवाज़ा

आदिल मंसूरी

ऐनक के शीशे पर

आदिल मंसूरी

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई

आदिल मंसूरी

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