मर Poetry (page 30)

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा

अहमद नदीम क़ासमी

जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ

अहमद नदीम क़ासमी

मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम न मानोगे

अहमद मुश्ताक़

बला की चमक उस के चेहरे पे थी

अहमद मुश्ताक़

टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया

अहमद मुश्ताक़

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ

अहमद मुश्ताक़

उसे इक अजनबी खिड़की से झाँका

अहमद ख़याल

फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं

अहमद ख़याल

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

अहमद हुसैन माइल

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़

अहमद हुसैन माइल

उस के नाम जो मुझे नहीं जानती

अहमद हमेश

आख़िरी मुकालिमा

अहमद हमेश

1973 की एक नज़्म

अहमद हमेश

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़'

अहमद फ़राज़

मुझ से पहले

अहमद फ़राज़

मत क़त्ल करो आवाज़ों को

अहमद फ़राज़

ईद-कार्ड

अहमद फ़राज़

यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ

अहमद फ़राज़

क़ुर्ब-ए-जानाँ का न मय-ख़ाने का मौसम आया

अहमद फ़राज़

क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता

अहमद फ़राज़

इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए

अहमद फ़राज़

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

अहमद फ़राज़

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए

अहमद फ़राज़

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

अहमद फ़राज़

तू ने भी सारे ज़ख़्म किसी तौर सह लिए

अहमद अज़ीम

सब मोजज़ों के बाब में ये मोजज़ा भी हो

अहमद अज़ीम

फ़ित्ना उठा तो रज़्म-गह-ए-ख़ाक से उठा

अहमद अज़ीम

दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया

अहमद अज़ीम

यहाँ लिखना मनअ है

अहमद आज़ाद

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