सुरक्षित Poetry (page 5)

मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं

दाग़ देहलवी

बी.टी-नामा

कर्नल मोहम्मद ख़ान

पूछते हैं बज़्म में सुन कर वो अफ़्साना मिरा

ब्रहमा नन्द जलीस

बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है

बेबाक भोजपुरी

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना

बशीर बद्र

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

बशीर बद्र

मैं, एक और मैं

बलराज कोमल

वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को

बद्र वास्ती

फल दरख़्तों से गिरे थे आँधियों में थाल भर

बद्र वास्ती

मैं अपने शहर में अपना ही चेहरा खो बैठा

अज़हर नैयर

साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं

आज़ाद गुलाटी

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर

आज़ाद गुलाटी

बहुत लम्बा सफ़र तपती सुलगती ख़्वाहिशों का था

आज़ाद गुलाटी

लम्स की शिद्दतें महफ़ूज़ कहाँ रहती हैं

अतीक़ुल्लाह

आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है

अतीक़ुल्लाह

उन का जश्न-ए-साल-गिरह

असरार-उल-हक़ मजाज़

माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते

आसिम वास्ती

तुम से शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं

अासिफ़ा ज़मानी

हवा-ए-हिर्स-ओ-हवस से मफ़र भी करना है

अरशद अब्दुल हमीद

ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका

अर्श मलसियानी

जो राह चलना है ख़ुद ही चुन लो यहाँ कोई राहबर नहीं है

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

उस बज़्म में क्या कोई सुने राय हमारी

अनवर शऊर

बड़े सुकून से ख़ुद अपने हम-सरों में रहे

अनवर मीनाई

दिमाग़ उन के तजस्सुस में जिस्म घर में रहा

अंजुम सिद्दीक़ी

ख़ाक का रिज़्क़ यहाँ हर कस-ओ-ना-कस निकला

अंजुम ख़लीक़

वो जिस के नाम में लज़्ज़त बहुत है

अंजुम बाराबंकवी

बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो

अनीस अंसारी

दरून-ए-जिस्म की दीवार से उभरती है

आमिर नज़र

जंग जारी है ख़ानदानों में

अमीर क़ज़लबाश

समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा

अल्लामा इक़बाल

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