लम्स की शिद्दतें महफ़ूज़ कहाँ रहती हैं
जब वो आता है कई फ़ासले कर जाता है
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Allama Iqbal
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Parveen Shakir
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
आसमाँ का सितारा न महताब है
दे कर पिछली यादों का अम्बार मुझे
हर मंज़र के अंदर भी इक मंज़र है
फ़ज़ा में हाथ तो उट्ठे थे एक साथ कई
कौन गुज़रा था मेहराब-ए-जाँ से अभी ख़ामुशी शोर भरता हुआ
क्या तुम ने कभी ज़िंदगी करते हुए देखा
वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में
ये राह-ए-तलब यारो गुमराह भी करती है
वो जो सर्फ़-ए-निगाह करता है
इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था
रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए