फ़ज़ा में हाथ तो उट्ठे थे एक साथ कई
किसी के वास्ते कोई दुआ न करता था
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
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तेरा ही निशान-ए-पा रहा हूँ मैं
वो जो सर्फ़-ए-निगाह करता है
वो
अंधेरा मेरे बातिन में पड़ा था
इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था
आईना आईना तैरता कोई अक्स
हम ज़मीं की तरफ़ जब आए थे
जब भी तन्हाई के एहसास से घबराता हूँ
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ
ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए
चलो सुरंग से पहले गुज़र के देखा जाए